सामने तो बेरहम बरसात थी
आज लम्बी ज़िन्दगी में रात थी
वक्त के हाथों हुआ मजबूर मैं
काबील-ए- तारीफ उसकी बात थी
छोड़ दी बाजी हमने जानकर
जितने पर हमारी मात थी
गम गलत करने का मौसम आ गया
मैकदे में हो रही बरसात थी
आंसुओं को क्यों बहाऊ मैं दोस्त
ये किसी की दी हुई सौगात थी